चटपटे चटखारे की चटपटी पोस्टों से परे, इस बार कुछ गंभीर बातें कहना चाहूँगा. पिछले रविवार आमिर खान जी के टी.वी. कार्यक्रम “सत्यमेव-जयते” का तीसरा भाग देखा. कार्यक्रम के पहले दोनों भागों की ही तरह आमिर जी के मर्मस्पर्शी भाषण
और दिल को छू लेने वाले गीत के साथ यह भाग (एपिसोड) शुरू हुआ. इस बार आमिर हमारे
समाज में व्याप्त एक और कुरीति - दहेज (या जहेज) को ले कर उपस्थित हुए थे. पहले के
दो भागों की तरह कुछ भुक्तभोगियों की कहानियाँ और आपबीतियाँ बताई गयीं. सन्देश यही
देने की कोशिश की गयी कि दहेज समाज के नाम पर कलंक है और इस से जीवन बर्बाद और
समाप्त भी हो जाते हैं. इस कुप्रथा का हमारे युवाओं को पुरजोर विरोध करना चाहिए और
यह प्रण करना चाहिए कि वे स्वयं भी दहेज न तो लेंगे, न देंगे. मैं इस सन्देश का
पुरजोर समर्थन करता हूँ. यह भी बता दूं कि मेरा अपना विवाह बिना किसी दान-दहेज के
हुआ था. इसे मैं कोई विशेष या प्रचारित करने लायक बात नहीं मानता; केवल इसलिए बता रहा हूँ कि इस पोस्ट में, और अगली कुछ कड़ियों में मेरे विचारों को पढ़ने के बाद मेरी बातों को सही परिप्रेक्ष्य में, इस एक जानकारी के साथ संज्ञान में लिया जाए. मुझे इस बात का भी अहसास है कि एक पुत्री का पिता होने के क्या मायने
होते हैं.
कार्यक्रम ठीक था, आवश्यक था, समाज पर एक कलंक को समाप्त करने की दिशा
में एक सराहनीय प्रयास था, पर यह भी कहूँगा कि कार्यक्रम की कुछ बातें खटक गयीं.
दिल्ली की एक पढ़ी लिखी युवती ने अपनी आपबीती में बताया कि उन्हें शादी के बाद उन
के पति अमरीका ले गए और वहाँ भी उन्हें और उन के माता-पिता को दहेज के नाम पर
सताते रहे. उन्होंने यह भी बताया कि उन के पति एक बार उन्हें घर में छोड़ गए और
उन्हें चार दिनों तक खाना या पानी तक नसीब नहीं हुआ. और भी बहुत से अमानवीय
अत्याचार हमारी इस बहन/बेटी ने दहेज के कारण सहे. इस उदाहरण से आमिर जी ने बताना
चाहा कि दहेज की सबसे पहली ही मांग को सख्ती से ठुकरा देना चाहिए और ऐसी जगह
रिश्ता ही नहीं करना चाहिए. बहुत सही, आवश्यक और सटीक सन्देश है. फिर भी, जितना कुछ उस
एपिसोड में सामने आया, उस से कुछ बातें स्पष्ट नहीं हो पायीं और कुछ गले नहीं उतरी.
मैं यह कतई नहीं कहना चाह रहा हूँ कि हमारी इन बहन/बेटी ने झूठ बोला. और यह भी कहूँगा
कि यदि उन के साथ वह सब हुआ जो उन्होंने बताया, तो बहुत गलत हुआ, और ऐसा करने वाले
कड़ी सजा के पात्र हैं.
जो बातें कुछ समझ नहीं आयीं, उन में से मुख्य बात यह थी कि वे
चार दिनों तक प्यासी रहीं क्योंकि उन के पति वाटर फ़िल्टर तक निकाल कर अपने साथ ले
गए थे. आप को बता दूँ कि मैं स्वयं अमरीका में ही विगत चार वर्षों से नल से घर में
प्रदाय किया जाने वाला साधारण पानी पी रहा हूँ. वैसे तो अमरीका में वाटर फ़िल्टर बेचने
और उपयोग करने वाले बिना फ़िल्टर किया पानी पीने के पीछे बहुत से रोग भी
गिना देते हैं, पर यदि वह सब हम मानने लगें तब तो दूसरे बहुत से अध्ययन यह भी बोल
देते हैं कि कहीं का भी पानी पीने योग्य नहीं है, यहाँ तक कि फ़िल्टर का भी! और
अमरीका में मुझ जैसे बहुत से लोग ऐसे हैं जो बिना कभी बीमार पड़े सीधे ही नल का पानी पीते आये हैं. वर्ना ऐसे तो देस में कहीं का भी, कैसा भी पानी नहीं पी सकेंगे. एक
और बात यह भी थी कि वे चार दिनों तक भूखी रहीं. इस बात को अगर सच माना जाए तो इस
के कुछ मायने निकलते हैं.
एक तो हमारी इन बहन/बेटी ने यह भी बताया था कि उन के पास घर की चाबियाँ भी नहीं थीं इस लिए वे घर छोड़ कर नहीं निकल सकती थीं. यहाँ यह बता दूँ कि ऐसी किसी परिस्थिति में फँसने जैसी कोई बात नहीं है, और अपने मकान मालिक या कम्युनिटी के ऑफिस से आप बंद घर खुलवाने में सहायता ले सकते हैं क्योंकि आप के घर की एक चाबी उन के पास भी होती ही है. पर चलिए, कठिन तो है पर मान लेता हूँ कि उन्हें या तो इस का पता नहीं था या इस विषय में वे किसी से जानकारी नहीं ले पाईं.
पैसों की समस्या के लिए छोटा मोटा उधार लिया जा सकता था. यदि इस वजह से वे खाना लेने नहीं जा सकीं तो इसका मतलब यह है कि वे अड़ोस-पड़ोस में भी किसी को भी नहीं जानती या पहचानती थीं कि किसी से मदद ले सकें, किसी को बाजार भेज कर कुछ बुलवा सकें, या घर किसी के भरोसे छोड़ कर कुछ खरीदारी कर सकें. यह भी माना जा सकता है कि शहर/देश में और किसी से उनका कोई परिचय नहीं था, किसी के साथ उठना बैठना नहीं था, कोई मित्र नहीं था/थी और न तो उन के पास गाड़ी थी, न उसे चलाने का लाइसेंस था. पर यदि अंतिम उपाय के रूप में हमारी इन बहन/बेटी ने ‘महिला शरणस्थली’ को फोन किया, तो यह तय है कि वे इस व्यवस्था के विषय में जानती थीं. चलिए, ऐसा भी मान लेते हैं कि वे इस संस्था से तब तक नहीं संपर्क करना चाह रही थीं जब तक अति न हो जाए.
एक तो हमारी इन बहन/बेटी ने यह भी बताया था कि उन के पास घर की चाबियाँ भी नहीं थीं इस लिए वे घर छोड़ कर नहीं निकल सकती थीं. यहाँ यह बता दूँ कि ऐसी किसी परिस्थिति में फँसने जैसी कोई बात नहीं है, और अपने मकान मालिक या कम्युनिटी के ऑफिस से आप बंद घर खुलवाने में सहायता ले सकते हैं क्योंकि आप के घर की एक चाबी उन के पास भी होती ही है. पर चलिए, कठिन तो है पर मान लेता हूँ कि उन्हें या तो इस का पता नहीं था या इस विषय में वे किसी से जानकारी नहीं ले पाईं.
पैसों की समस्या के लिए छोटा मोटा उधार लिया जा सकता था. यदि इस वजह से वे खाना लेने नहीं जा सकीं तो इसका मतलब यह है कि वे अड़ोस-पड़ोस में भी किसी को भी नहीं जानती या पहचानती थीं कि किसी से मदद ले सकें, किसी को बाजार भेज कर कुछ बुलवा सकें, या घर किसी के भरोसे छोड़ कर कुछ खरीदारी कर सकें. यह भी माना जा सकता है कि शहर/देश में और किसी से उनका कोई परिचय नहीं था, किसी के साथ उठना बैठना नहीं था, कोई मित्र नहीं था/थी और न तो उन के पास गाड़ी थी, न उसे चलाने का लाइसेंस था. पर यदि अंतिम उपाय के रूप में हमारी इन बहन/बेटी ने ‘महिला शरणस्थली’ को फोन किया, तो यह तय है कि वे इस व्यवस्था के विषय में जानती थीं. चलिए, ऐसा भी मान लेते हैं कि वे इस संस्था से तब तक नहीं संपर्क करना चाह रही थीं जब तक अति न हो जाए.
किसी भी सभ्य देश की तरह अमरीका में भी महिलाओं और बच्चों (या कैसे भी नागरिकों)
की सुरक्षा और सहायता के लिए संस्थाएं हैं और बहुत अच्छी व्यवस्थाएं हैं. साथ ही
उल्लंघन करने वालों के लिए कड़े क़ानून हैं, शायद भारत से कहीं अधिक कड़े, और उनका
सख्ती से पालन होता है. अब अमरीका आने वाले हम देसी और कोई बात शायद देर से जान या
समझ पायें, पर यदि हम एक ध्येय ले कर जीविकोपार्जन या विद्यार्जन के लिए यहाँ आये
हैं, तो यह बात सब से पहले समझते हैं कि यहाँ विदेशी हो कर रहते हुए यहाँ के क़ानून
को अपने खिलाफ कुछ भी करने का यथासंभव कोई भी मौका हमें देने का कारण नहीं बनना
है. यदि हमारी इन बहन/बेटी के पति महोदय ने वह सब किया जिसका अब वे आरोप लगा रही
हैं, तो यह उन महोदय की मूर्खता की पराकाष्ठा का ही परिचय है. पर वे कितने भी लालची क्यों न हों, यदि उनकी पत्नी ने कहीं ९११, पुलिस या ऐसी किसी संस्था को मात्र एक शिकायती फोन कर दिया तो
उन के साथ क्या क्या होगा, वे यह न जानते हों, ऐसा मैं नहीं मान सकता. और यदि ऐसा फोन हो गया तो वह उन के
समाप्त होने की महज शुरुआत होगी, ऐसा वे नहीं समझते हों, इस पर विश्वास करना भी
ज़रा मुश्किल है, खास तौर पर जब वे साल के ६५००० डॉलर (इस राशि के विषय में बात
करते समय हर एपिसोड के करोड़ों लेने वाले आमिर ने जैसा विस्मय जाहिर किया, वह भी अजीब
और नाटकीय लगा) कमाने वाले ऐसे अस्थायी दक्ष-कर्मी हैं. ऐसे दक्ष-कर्मियों का पूरा
लेखा जोखा दोनों देशों की सरकारों के पास होता है, क्योंकि वे यहाँ किसी कबूतरबाजी
के रास्ते चुपचाप नहीं घुस कर रह रहे होते हैं. हाँ, यह हो सकता है कि उन्हें
भारतीय नागरिक होने के बावजूद भा.द.वि. की धारा ४९८-अ के विषय में जानकारी न हो,
पर उन्हें यदि यह नहीं पता है कि भारत में दहेज प्रताड़ना के खिलाफ कोई न कोई क़ानून
है, जो बड़ा सख्त है, तो वे दशकों से सोये रहे होंगे या किसी जंगल-पहाड़ पर ही रहते
आये होंगे. और वे सदा अमरीका में ही भारतीय क़ानून से बच कर रहेंगे और उनके भारत
लौटने की कोई सूरत ही नहीं हो सकती, ऐसा वे सोचते होंगे, यह मानना भी मुश्किल है. हम
देसी अमरीका के अंदर घुसने, यहाँ से बाहर जाने, इस से सम्बंधित स्वीकृतियाँ और
वैधता, पासपोर्ट रद्द होना, निर्वासन या देशनिकाला आदि क्या होता है, इतना तो कम
से कम जानते ही हैं.
इस के अलावा यह भी अजीब लगा कि भारतीयों की इतनी बड़ी संख्या में यहाँ
होने के बाद भी, दिल्ली की हमारी इन पढ़ी-लिखी बहन/बेटी का अपने शहर या फिर पूरे
अमरीका में कोई भी परिचित नहीं था जिस से वे अपनी कहानी कह सकतीं या सहायता मांग
सकतीं. चलिए यह फिर भी माना जा सकता है कि ऐसा था. पर यह देश ऐसा भी अति-व्यकिवाद
और उदासीनता या बेरुखी के चलन वाला नहीं है कि यह मालूम हो जाए कि सहायता मांगता हुआ कोई अनजान दिनों का भूखा है इस के बाद भी उसे भूख से मरने दिया जाए. यहाँ भी आप के पड़ोस में यदि कोई देसी
नहीं, तो अमरीकी रहता (या रहती) हो, तो उस से साधारण शिष्टाचार के तहत भी कम से कम
दुआ सलाम तो हो ही जाया करती है (यदि आप कम से कम इतना व्यवहार तो जानते-समझते हों). आश्चर्य है कि हमारी इन बहन/बेटी को महिला सहायता
संस्था को फोन करने से पहले ऐसे किसी का भी ख्याल नहीं आया और वे चार दिनों तक
भूखी-प्यासी रहीं. स्मरण रहे कि हम दिल्ली की एक पढ़ी-लिखी, समृद्ध परिवार की कन्या
के विषय में बातें कर रहे हैं. यदि ऐसी भी कन्याएँ हैं, तो हमें सारे देश में अपनी बेटियों/बहनों को महत्वपूर्ण जानकारियाँ देने के विषय में अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है. मेरी एक मित्र दिल्ली की एक ऐसी ही अपनी मित्र के विषय में बता रही थीं जो पढ़ी-लिखी, कामकाजी होने के बाद भी वैवाहिक जीवन में दुखी होने की बात मित्रों को बता पाती हैं, पर अपने माता-पिता को मात्र इस डर से कुछ भी नहीं बता रही हैं कि कहीं उन्हें सदमा न पहुँचे. तो निष्कर्ष यही है कि, ऐसा हो तो सकता है. साथ ही हो सकता है कि सारी बातें सामने नहीं आ पाईं, और अधूरे प्रस्तुतीकरण के कारण बहुत से सवाल अनुत्तरित रह गए. हो सकता है कि वे बहुत समय यहाँ नहीं रहीं और यहाँ के रहन-सहन और व्यवस्था को समझ नहीं पायीं. या हो सकता है कि वे सहनशील होने के साथ साथ अत्यधिक संकोची, शर्मीली या डरी-सहमी रहती थीं. जो हो, मेरी पूरी सहानुभूति उनके साथ, यदि उन की सारी बातें सच हैं तो.
फिर से कह दूं, यह केवल वे बातें हैं जो मुझे सरलता से विश्वास कर लेने
लायक नहीं लगी. यदि फिर भी सचमुच ऐसा हुआ है और उन की कही सारी बातें सही हैं, तो आमिर
जी को कुछ सन्देश और भी देने चाहिए थे, ऐसा मैं स्वयं एक बेटी का बाप होने के नाते सोचता हूँ. इन में से एक यह है कि हर बेटी (विवाहित और
अविवाहित, दोनों पर लागू) के बाप को, अपनी बेटी को परदेस रवाना करने से पहले उस
के लिए विपत्ति में काम आने वाली ऐसी धनराशि का इंतज़ाम करना चाहिए, जिस के विषय
में केवल उस की बेटी को पता हो, दामाद या ससुराल पक्ष को नहीं – और जिसे उस की
बेटी अपने परिवार को बताए बिना उपयोग कर सके. यहाँ यह याद रहे कि छोटे मोटे कारणों
से मनमुटाव कर के वापस भारत आ जाने वाली बहुओं की भी संख्या कुछ कम नहीं है, इसलिए
मेरा ऊपर का सुझाव सिर्फ उन समझदार बेटियों के लिए था, जो सच में विदेश में पैसों
के लिए मोहताज हो गयी हों और उस का उपयोग ही करने वाली हों, दुरूपयोग नहीं. इस के
अलावा, संभव हो, तो विपत्ति आने पर किन किन से उस शहर/देश में संपर्क किया जा सकता
है, ऐसे लोगों की सूची अपनी बेटी को अवश्य देनी चाहिए. ऐसे लोगों को भी यह जानकारी
दे कर और उन से अनुमति ले कर रखनी चाहिए कि उन से सहायता संपर्क करने की नौबत आये,
तो उन से संपर्क किया जायेगा (यदि कभी-कभार सामान्य सम्पर्क नहीं होने वाला हो
तो).
इस के अलावा जो बात अजीब लगी वह थी “पकडुआ ब्याह” (या "चोरवा ब्याह") वाले मामले पर चर्चा
की. आमिर जी ने यह दिखाने से भी पहले, कि यह एक विवाह-योग्य लड़के का अपहरण कर के किसी
अनजान कन्या के साथ उसके जबरदस्ती विवाह कर देने का मामला है, हमें यह बताया कि यह
विवाह कितना सफल है. इस के बाद असल कहानी बतायी गयी, एक आपबीती के रूप में, जिस
में केवल यही सामने आया कि इस जबरन विवाह के सफल होने के पीछे का कारण यही था कि
लड़के ने समझौता किया और लड़की को अपना लिया. जिस मजाकिया अंदाज़ में आमिर ने यह
प्रस्तुत किया, उस से ऐसा लगा कि वे उनके अपने विचार में एक बढ़िया समाधान भी बता रहे थे और दहेज-लोलुप
वर-पिताओं को चेतावनी भी दे रहे थे, हालांकि उन्होंने शब्दों के द्वारा यह नहीं
कहा. आमिर जी जो भी कहें, मैं इसे मानवाधिकार का हनन और उस लड़के पर एक तरह का बलात्कार
ही कहूँगा. मुझे यह उदाहरण एक ऐसा बलात्कार लगा, जिस की पैरवी यह कह कर की जा रही थी
कि यदि आप बलात्कार का विरोध नहीं कर सकते, तो उस का मजा लीजिए ना. ऐसे पकडुआ
विवाहों के विषय में मैं ने पहले भी बहुत सुना है. आमिर जी ने जो बात हमें यहाँ
नहीं बताई, वह यह थी कि ऐसे पकडुआ ब्याहों को अंजाम देने के बाद अपहरणकर्ताओं द्वारा
वर को सुहागरात के लिए जबरन नशे में लाने, और फिर उसे नामर्द बता कर नाराज कर के उकसाने जैसे कुछ मानसिक हथकंडे अपना कर शादी सम्पूर्ण करवा दी जाती है. इस के पश्चात सख्त शब्दों में वर और उस के घर वालों को चेतावनी भी दी जाती है, कि अब हम ने
ब्याह करा दिया और ये दोनों पति-पत्नी हुए. यदि भविष्य में इस लड़की की तरफ़ से ज़रा
भी शिकायत आयी, तो ४९८ तो बाद में लगेगा, हम पहले ही न पूरे परिवार को उड़ा देंगे.
ऐसे विवाह सही अर्थों में समझौता भी नहीं हैं, बल्कि विवाह नाम की पवित्र संस्था
का एक अलग तरह का मखौल-मात्र हैं, चाहे दहेज की समस्या का नाम दे कर इन्हें कितना
भी जायज ठहराने का प्रयास आमिर जी जैसे बुद्धिजीवी कर लें.
सब से बड़ी बात जो खटकी, और जिस पर मुझे घोर आपत्ति है, वह यह है कि आमिर जी ने दहेज क़ानून, घरेलू हिंसा क़ानून और
४९८-अ के व्यापक दुरुपयोगों पर एक शब्द तक नहीं कहा. क्या आप को पता है, कि वैवाहिक
जीवन की समस्याएँ, जिन में दहेज और प्रताडना भी मुख्य कारण हो सकते हैं – के कारण
प्रति वर्ष जितनी वधुओं के जीवन का अंत होता है, उस से दुगुनी संख्या उन पतियों की
है, जो प्रतिवर्ष प्रताड़ना के झूठे मामलों में फंसाए जाने की वजह से आत्महत्या कर
लेते हैं? इस विषय में और भी ऐसे आंकड़े हैं जो आपको विस्मित कर के रख देंगे. तो
क्या आमिर जी किसी अगले एपिसोड में इस समस्या को ले कर भी प्रकट होंगे? या यह
महिला संगठनों द्वारा किये जाते रहे और दिन-ब-दिन बढते एक ऐसे प्रचार/दुष्प्रचार
की तरह हो कर रह जायेगा, जिस के हासिल में कुछ पत्नियों की सुरक्षा के साथ बहुत
सारे पुरुषों और बहुत सारी महिलाओं के साथ झूठे प्रकरणों में फँस कर खत्म हो जाने
और भारतीय परिवार के अंत की दिशा में जाने से अधिक कुछ नहीं है?
मेरे विचार में आमिर के कार्यक्रम का सन्देश पूर्ण तो तब होता जब वे दहेज लेने और देने का विरोध करने के साथ साथ पत्नियों की सुरक्षा के लिए बने उत्पीड़न और दहेज संबंधी कानूनों के दुरूपयोग और झूठी शिकायत कर के ससुराल वालों को प्रताड़ित करने के चलन से भी तौबा करने की बात कहते. आशा करता हूँ कि इन १३ एपिसोडों में से एक ऐसा होगा जो, तीसरे एपिसोड के अर्ध-सत्य को पूर्ण करेगा, क्योंकि यह भी इतनी ही गंभीर समस्या बन गयी है. मुझे इंतज़ार रहेगा, और मैं इस विषय में अपनी अगली किसी पोस्ट में विस्तृत चर्चा का प्रयास करूँगा.
मेरे विचार में आमिर के कार्यक्रम का सन्देश पूर्ण तो तब होता जब वे दहेज लेने और देने का विरोध करने के साथ साथ पत्नियों की सुरक्षा के लिए बने उत्पीड़न और दहेज संबंधी कानूनों के दुरूपयोग और झूठी शिकायत कर के ससुराल वालों को प्रताड़ित करने के चलन से भी तौबा करने की बात कहते. आशा करता हूँ कि इन १३ एपिसोडों में से एक ऐसा होगा जो, तीसरे एपिसोड के अर्ध-सत्य को पूर्ण करेगा, क्योंकि यह भी इतनी ही गंभीर समस्या बन गयी है. मुझे इंतज़ार रहेगा, और मैं इस विषय में अपनी अगली किसी पोस्ट में विस्तृत चर्चा का प्रयास करूँगा.
आवश्यकता केवल पत्नियों को सुरक्षित करने की नहीं है, पूरे परिवार को
सुरक्षित करने की है, जिस में पति भी आते हैं और बच्चे भी. यदि हम स्वस्थ वातावरण
में परिवार चलाने के प्रयासों के लिए प्रयत्न नहीं करेंगे, केवल पत्नियों को ही
सदा सही और उनके कथन को परम सत्य मान कर चलेंगे और यही मानते हुए कानून बनायेंगे
और चलाएंगे, तो याद रहे कि इस सब से एक पत्नी को बदला ले लेने की संतुष्टि शायद मिल जाती हो, और कुछ झूठे और लालची लोगों को विपरीत पक्ष से कानूनी फौजदारी के द्वारा मुफ्त की पैसा उगाही करने का मौका मिल जाता हो, पर एक परिवार के पति और बच्चे भी कलह की भेंट चढ़ते हैं और पूरा परिवार ऐसे
तबाह हो जाता है कि उस का वापस बस पाना, सुखी रह पाना असंभव हो जाता है. एकतरफा
प्रयासों से हमारा समाज नहीं बचेगा. अर्ध-सत्य से बचें, क्योंकि कहीं नहीं कहा गया
है – अर्ध-सत्यमेव जयते!
Sir, I am 200% agree with you..but if they will not put any MASALA on this type of show than how we Indian will get involve emotionally..(for example KBC 5 and it got mega hit...new add of Indian Ideal...new add of Anupam Kher buy P&A product and help children for education )...If we want some AANSU (tears)in our eyes than again we need to eat so much spices ..bina namak mirchi ka to hum khana bhi nahi dekhte chahe kitni bhi bhookh ho phir to ye TV serial hai :) :)
ReplyDeleteधन्यवाद, आशीष. इस में केवल मसाले का काम नहीं है, स्टार-वैल्यू का भी है, ऐसा मेरा सोचना है.
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ReplyDeleteAmiya Shrivastava: Exactly sir..pehle waale ladkee kitnaa badha chadhaa kar bol rahee thee...paani peene ko nahin mila..ghar lock kar ke nahin jaa saktee thee etc...koi bhi US mein rehne wala samajh jaayegaa kitnaa sahee aur kitnaa galat hai!
May 23 at 6:53pm •
Amitabh Mishra: @Amiya Shrivastava: Yes yaar, even getting a key from the maintenance or your landlord to open your house in such events is not that big a deal. Anyways, my full sympathies if she assumed things, or was too timid/intimated to think differently.
May 23 at 6:58pm •
Amiya Shrivastava: true..that's what my wife said..that may be she panicked..or didn't simply know..
May 23 at 7:00pm •
Amitabh Mishra: @Amiya Shrivastava: Possible, so I would give her the benefit of doubt on that one.
May 23 at 7:01pm •
Amitabh Mishra: Amiya Shrivastava: What astonished me was that there was absolutely nobody she could call locally/within US, or any neighbor/s she could tell her plight to!! Not sure what to believe here, this is too baffling for me.
May 23 at 7:05pm •
Amiya Shrivastava: I don't know the women cell number but I do know 911....it's amazing how she chose to dial women cell and not 911..who gave her the number? Probably that person could have given her some food as well.
May 23 at 7:33pm •
Amitabh Mishra: @Amiya Shrivastava: Probably, 911 helped her with that. Not sure.
May 23 at 7:53pm •
धन्यवाद, अमिय! हम दोनों इस देश में रह चुके हैं, इसलिए इतने विस्मित हैं. फिर भी, संदेह का लाभ मैं अपनी उन बहन/बेटी को ही देना चाहूँगा. शायद हमारे पास अधूरे तथ्य हैं.
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ReplyDeleteAnand Vaidya: As far as I remember, everyone receives a pamphlet from the US embassy when they go for stamping which consists of all the important numbers in US. She might have got the Women's Cell number from there. Wild guess !
May 23 at 7:59pm •
Amitabh Mishra: @Anand Vaidya: Really? I don't really remember getting anything that. Or, may be I already knew a bit, so didn't care. Probably I also had something from my University on this. Will go back and check that packet.
May 23 at 8:01pm •
Anand Vaidya: @Amitabh : Yes Sir, I'm pretty sure that we get it.
May 23 at 8:12pm •
Amiya Shrivastava: That's right.
May 23 at 8:40pm via mobile •
धन्यवाद, आनंद! मेरे विचार में पहली बार परदेस आती बहनों/बेटियों को अधिक जानकारी और सहायता मुहैया करवाना नितांत आवश्यक है. देखते हैं, यदि हम-आप इस दिशा में कुछ कर सकें.
Deleteफेसबुक की टिप्पणियां (और जवाब) - 3
ReplyDeleteArpita Dube: Too Good ...
May 23 at 8:42pm •
अर्पिता जी को मेरा धन्यवाद
फेसबुक की टिप्पणियां (और जवाब) - 4
ReplyDeletePankaj Jain: Agree Amitabh, Issues raised are genuine, but presentation all seems scripted, Aamir's reaction "achchha" looks very odd.
May 23 at 10:41pm •
पंकज भाई जी को मेरा धन्यवाद
फेसबुक की टिप्पणियां (और जवाब) - 5
ReplyDeleteDhyanesh Ramamoorthy: Hindi Nai Maalum :(
May 23 at 10:45pm •
Amitabh Mishra: @Dhyanesh Ramamoorthy: No issues, நான் தமிழ் தெரியாது (I don’t know Tamil either)
May 23 at 11:06pm •
Dhyanesh Ramamoorthy: Ha ha. No issues at all :) Just got disappointed as I am not able to read your blog !! :(
May 23 at 11:45pm •
Amitabh Mishra: @Dhyanesh Ramamoorthy: You are right, may be I should also write a parallel English version of my blogposts.
May 24 at 12:46am •
ध्यानेश जी को मेरा धन्यवाद
फेसबुक की टिप्पणियां (और जवाब) - 6
ReplyDeletePramod Bisht: ha ha Amitabh sir - water filter waali baat 100% valid hai :D nalke ka paani itna bhi bura nahi :P
May 24 at 12:27am •
Amitabh Mishra: @Pramod Bisht: Haan Bhai, hum toh chaar saal se wahi peete aaye hain.
May 24 at 12:28am •
Pramod Bisht: main bhi sir :P .. jab se aaya hun :D
May 24 at 12:30am •
प्रमोद जी को मेरा धन्यवाद
फेसबुक की टिप्पणियां (और जवाब) - 7
ReplyDeleteShashank Sharma: When I saw the title and read initial few lines, I was almost against this article, and thought even if Aamir is exaggerating, I wont mind it as long as he is giving the message. Even if it can help a few, that's the motto.
We should not forget that Aamir khan could've invest this much time and money in any of the producer's offer to him, and could've earned 10 times more than what he is earning with this, but he dint. We should appreciate this effort without any doubt.
But the second half of the article talks about a entirely different problem, which is misuse of dowry law is more than proper use. Yes I do agree that this was missing from the show and would have been great to complete it. May be they are planning to consider this as a "different problem" itself.
May 24 at 12:28am • •
Amitabh Mishra: @Shashank Sharma: 4 crores + part of 4Rs/sms subsidy PER EPISODE - that is indeed a great investment of time and money, not to forget the kind of donations that are going to already slickly financed feminazi (that should be the word) NGO organizations hell bent upon breaking the already crumbling social fabric of the Indian society in the false garb of 'नारी सशक्तीकरण' - along with the publicity ..... that's amazing income for the involved. I am happy you got the real essence of what I was trying to say. Wait for the sequels to this post. I assure that you will be shocked and moved, both.
May 24 at 12:35am •
Amitabh Mishra: @Shashank Sharma: Also, if Aamir (or anyone else) needs to exaggerate and lie to address and make an impact about a genuine social evil, I feel that the purpose of this show is already defeated. That is absolutely not needed. This is not a movie, it is a true and live show. Somehow, I can already see the image of a perfectionist taking a beating. Well, the incidental (and accidental) social benefits would be the only tangible thing that the mango people would stand to gain from this show.
ReplyDeleteMay 24 at 12:42am •
Shashank Sharma: @Amitabh bhaiya : Bhaiya, I agreed for exaggeration not for lie, I don't think he was lying. Our news channels exaggerate for their own benefit, and we accept, our advertisements exaggerate (probably lie also), we accept . I don't find a reason if we can't accept this for a good cause. I am not really interested about the financial part, coz none of us knows the reality how that's getting managed and distributed.
Mostly, we Indians need something powerful and shocking to change something, we have so many small problems already around us, that we tend to ignore small things. So if Aamir's presence making it loud, I will be happy.
But as I already mentioned, I completely agree with the second part of post which says that this is indeed getting used by the wrong people for the wrong reason very frequently, which was one major missing point from the show. May be, as you told, your further posts in the blog help me to understand. Waiting for them .....
May 24 at 1:25am •
Amitabh Mishra: @Shashank Sharma: That's why I was telling you to visit the US. Then you would have understood the first part too, and the reason why I found it hard to believe. In any case, nowhere did I ever even hint it was a lie, and always talked about the assumption that it was true. This is because there is always a probability for the least probable occurrence to almost certainly happen. :)
May 24 at 1:30am •
Amitabh Mishra: @Shashank Sharma: Also, I can tolerate exaggerations in movies, I know there is exaggeration in news reporting, I am certain about the exaggeration by Diggi Raja, Rakhi Sawant, Didi, Rashid Kamal Khan, and Z Hamid - but I don't expect an exaggeration from Aamir Khan in a live show addressing social causes. Any exaggeration in such a show amounts to being a lie to me and is simply not acceptable. That's when such a program loses its credibility, followed by viewership, followed by the belief system of common human beings in genuine social causes.
May 24 at 1:37am •
शशांक भाई जी को मेरा धन्यवाद
@Shashank sharma: Just adding to what amitabh mishra has already said about how exaggerations are tantamount to lying in this case, but first and formost remember the name of the show is 'satyameva jayte', it is not 'exagerration meva jayete'. I dont have a problem is the show is renamed to 'exagerration meva jayete' and then he does his part with exaggerations
Deleteफेसबुक की टिप्पणियां (और जवाब) - 8
ReplyDeleteNitin Choubey: good one sir, its just bcoz of amir people are talking about this serial too much else there are many other serials which also shows the problems persist in our society jindagi live, crime petrol ..etc. he said dil pe lagegi to baat banegi..par koi baat nahi banti nahi to movies to 60 sal se bante aa rahe hai..and they say cinema is mirror of society but har koi movies me apne apko hero hi samjha hai . aur agar sikhana hai hi to daily soap kya kam hai. the good example is the movie 3 idiots. its big hit , message oriented cinema , still many students committing sucide and most teacher think thy r ranho not the virus. :)
May 24 at 12:59am •
Amitabh Mishra: @Nitin Choubey: 100% agreed, is kaaryakram se jyaada dil par lagne waale par kamm naatakeey programs bhi hain, jo Aamir Khan ke nahin hone ke kaaran dekhe hi nahin gaye hain.
May 24 at 1:02am •
नितिन भाई जी को मेरा धन्यवाद
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ReplyDeleteNikhil Sinha: I d the word feminazi. no word describes them better.
May 24 at 1:19am
निखिल जी को मेरा धन्यवाद
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ReplyDeletePradeep Agrawal: Amir khan is no worse than other bollywood starts who appear on talk shows to make good money. He was really so concerned about social issues, he should be raising them through other medias much earlier rather than negotiating with SONY TV for so long to settle at 1 crore per episode. And we Indians are so naive to go ga ga over it.
May 24 at 1:33am •
प्रदीप जी को मेरा धन्यवाद
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ReplyDeleteAshish Choudhary: Sir, Bina Namak Mirch ki to sabji bhi achi nahi lagti and ye to show hai....jabtak spicy nahi kahayenge tab tak aanshu (emotion) kaise aayenge :) :)
May 24 at 1:55am •
आशीष जी को मेरा धन्यवाद
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ReplyDeleteArpit Goyal: Thats was my first comment sir.....why didn't she call 911.....Initially I thought she might not have a phone with her.....but then she said that she called up for some help and her parents after 4 days.....
May 24 at 9:43am •
Amitabh Mishra: @Arpit Goyal: That's correct. We know for sure she had a working phone in access. May be she was too timid, intimidated or thinking too much about the consequences. My sympathies towards her if that was the case.
May 24 at 10:21am •
अर्पित जी को मेरा धन्यवाद
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ReplyDeleteNeeraj Dwivedi: जिस पर गुजरती है वो ही जानता है.किसी महिला पर व्यर्थ की नुक्ताचीनी करने वालो से निवेदन है की आमिर के सराहनीय प्रयास को देखे.आमिर को इस प्रोग्राम को बनाने में २ साल का वक्त लगा है .वो चाहते तो इतने समय में आसानी से २-४ मसाला फिल्म बनाकर या किसी भी गेम शो को होस्ट कर इससे कई ज्यादा गुना पैसा कम सकते थे.
20 hours ago •
Amitabh Mishra: @Neeraj Dwivedi: आप तो समझ ही नहीं पाए हैं कि मैं कहना क्या चाह रहा था. वैसे यदि किसी बात विशेष पर आपत्ति हो तो कहें, और पूरे लेख को जुक्ताचीनी कह कर हंसी में उड़ाते हुए आमिर की महानता पर न्योछावर न करें. सबसे पहले कह दूं कि दहेज समस्या ही नहीं है, ऐसा मैंने कहीं नहीं कहा है. दहेज निश्चित र्रूप से तथाकथित ‘सभ्य’ समाज के ऊपर एक कलंक है और एक विकराल समस्या है.
मेरी (या मेरे लेख का समर्थन करती हुई टिप्पणियां करने वालों ने) इस 'नुक्ताचीनी' में मैंने उन महिला वाले केस के विषय में जो भी कहा है, सब कुछ तथ्यों के आधार पर, अमरीका में जीवन के विषय में अनुभव से कुछ बातें जानते हुए कहा है. भाषा को ध्यान से देखें. मैं ने केवल कुछ बातों पर कारणों को गिनाते हुए आश्चर्य व्यक्त किया है, पर फिर भी माना यही है कि बातें सच थीं और हो सकता है कि सारी बातें सामने नहीं आ पायीं, और कुछ सवाल आमिर के अधूरे प्रस्तुतीकरण की वजह से अनुत्तरित रह गए. हमारा क़ानून भी ऐसा ही है. ४९८अ के विषय में पता न हो तो पता कर लें (और उस के दुरुपयोगों से होती समाज की दुर्गति के विषय में भी), या इस विषय पर मेरी अगली पोस्ट को जरूर पढ़ें.
रही बात आमिर की, तो आप इतने विश्वास से कैसे कह रहे हैं कि यह “महज” एक महान काम है और आमिर इस के द्वारा कमाई नहीं कर रहे हैं, वह आप जाने. इस से पहले इस समस्या पर ऐसे (या इस से बेहतर) कार्यक्रम और परिचर्चाएं आयोजित नहीं हुए हों, ऐसा नहीं है. इस बार का अंतर यह है कि आमिर के कारण अधिक लोग इस कार्यक्रम को देख रहे हैं. मेरा दुःख इसी बात पर था कि इतना अच्छा मौका मिला था, पर यह कार्यक्रम आमिर के एकतरफा प्रस्तुतीकरण (या मिस्टर परफेक्शनिस्ट की अधूरी तैयारी?) के कारण सारे और सही तथ्य जनता को नहीं दे रहा है.
रही बात ‘जिस पर गुजरती है, वही जानता है’ की, तो आप ने बिलकुल सही कहा. मैं ने जो परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत किया है, एक भुक्तभोगी होने के कारण ही प्रस्तुत कर पाया हूँ. आप भी शायद भुक्तभोगी रहे हैं, इस लिए निवेदन है कि समस्या को एक ही तरफ़ से न देखें, और लेख को ठीक तरह से समझ लें.
14 hours ago •
नीरज भाई जी को मेरा धन्यवाद, और मेरी सहानुभूतियाँ और प्रार्थनाएं, यदि इस से सम्बंधित उन के कुछ बुरे अनुभव रहे हों
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ReplyDeleteNeeraj Dwivedi
अमिताभ सर,दहेज़ एवं महिला प्रताड़ना हमारे देश की एक विकराल समस्या है.मेरा निवेदन expert opinion देने वाले उन सलाहकार मित्रों से था जो पीड़ित महिला को शक की दृष्टि से देखते हुए न.९११ ,एवं आमिर के पैसे कमाने वाली जैसी व्यर्थ की बातों में उल्झे हुए हैं. US में बैठे हुए सलाहकार स्वयं जानते हैं की उन्होंने कितनो की मदद की है...रहा सवाल आपके लेख पर टिका टिप्पणी करने का ....ऐसा दुस्साहस तो हम स्वप्न में भी नहीं कर सकते हैं क्योंकी ये हमारी क़ाबलियत एवं अधिकार छेत्र के बाहर है.आशा है मित्रों की स्वस्थ्य आलोचना एवं विचारो को अपने लेख में जगह देंगे.
28th May, 2012
Amitabh Mishra Neeraj Dwivedi: नीरज भाई, मैं वही तो कह रहा था कि वे टिप्पणियां गलत नहीं हैं, यदि आप अमरीकी रहन सहन, समाज, व्यवस्था और महिलाओं की तरफ़ सरकार के नज़रिए को जानते हों. उस मामले में टिप्पणियां करने वाले सारे लोग अमरीका में रह रहे हैं या रह चुके हैं. यहाँ के जीवन से जुडी बहुत सी सामान्य ज्ञान की बातें शायद हमारी वे बहन/बेटी जी नहीं जानती थीं. और ये इतनी सारी बातें थीं कि अमरीका में रह चुके किसी को भी आश्चर्य होगा कि ऐसा कैसे हो गया कि उन्हें इतनी सारी साधारण बातें भी नहीं पता थीं. बस, इसी कारण से लोगों ने विस्मय प्रकट किया है. आग्रह है कि बात को उसी तरह से लें. यदि सच में वे सताई गयी थीं (जो बिलकुल संभव है), तो हम सभी लोग सदैव उनके साथ हैं. इसके अलावा स्वस्थ आलोचना की जहाँ तक बात है, तो मैं ने आप के (और मेरे अन्य भाइयों) द्वारा यहाँ उठाये सवालों का यहीं पर जवाब भी दिया है, कुछ भी यहाँ से मिटाया नहीं है, और हमारे इस वार्तालाप को अपने ब्लॉग पर भी ले जा कर चिपकाया है, आप (और अन्य सभी) को धन्यवाद के साथ. एक बार पुनः ब्लॉग पर जा कर स्वयं देख लें. आप सदैव मेरे लिए भाई ही रहे हैं और भाई ही रहेंगे. :)
28th May, 2012
नीरज भाई जी को पुनः धन्यवाद
Sir, I feel you are making a valid point about the girl being so naive. Correct me if I am wrong, but at times, the need of recognition and sympathy sometimes takes over the absolute truth and leads to a bit of manipulation as well -especially for people who have been victims. It is not difficult for makers of the show to capitalize on that very need and made it into what it came out to be.
ReplyDeleteYou hit the bull's eye. What matters to the makers is just the TRP, an their belief in the dubious saying - "End justifies means!"
DeleteSir, I would share your disbelief on the girl being so naive. As you have repeatedly mentioned that it might me true. However , I would like to say that at times the need for visibility , recognition and sympathy takes over the absolute truth which leads to a bit of manipulation as well- especially for people who have been victims and have never been heard.
ReplyDeleteIt would not have been difficult for the makers of the show to capitalize on this very need.
Yes, I still would like to give her the benefit of doubt. BTW I discovered that she did not stay in the US for a short time, but for probably around three years (http://indiankanoon.org/doc/1260034/). This new information has confused me even more.
DeleteI would want to give her all the benefits of doubt; however, I had some questions running in my mind on the situation the lady was in. With all due regards to the pain she has gone through, yet some questions remain unanswered.
ReplyDelete1. She was locked in the house for good 4 days without food and water. Unfortunately, I had just finished watching 127 hours and I began wondering about how serious her health must have been. Wasn't she hospitalised for recovery post then? Didn't US doctors inquire about the nature of illness? Didn't the fridge have stock of food, or tap water is always the best thing (Valid point Amitabh Sir from your end). People don't die of hunger, instead they do of thirst!
2. Probably she didn't want to tell her parents of her situation immediately; but what about girlfriends? Every woman has one girlfriend (if not a string of them) whom she confides everything, from the silliest of daily mundane routine to anything big. Not one who could raise an alarm. Plus in the age of internet, communication can be really fast. Or did the spouse take away his laptop too (high possibility). I believe she must have been well educated, yet some lapses occur with the way its been shown.
3. Basis Hollywood movies, call 911 and police is at your door step. When kids being beaten by parents can get them behind bars; domestic violence is a huge trigger. She called the women cell who asked her to reach some hospital, wherefrom she will be picked and taken care of. She must have narrated her sorry state, under these circumstances wouldn't the women cell call 911 and get assistance at her doorstep? Women cell reps could have also come over to her place or how about Indian friends, neighbours, anybody?
We've all got just speculations over the story. It's a sad state of affairs if it's true in its entirety (even if not); yet the SJ folks shouldn't capitalise on it. A tear from any eye can get a stream of tears from complete strangers. I myself had goosebumps imagining how am queuing in the marriage market. Instead of just broadcasting her story, faces of the culprits should also be shown (which are protected as of now).
Thanks for the comments, I share your concerns Akanksha.
ReplyDelete1. She did say she was taken out for treatment (or something similar), but if that was the case, criminal case would have been registered against her husband. However, the last piece of information I have says that he is in the US and is working. This is something improbable for a foreigner in the US. The only way that is possible is if she didn't press charges against him in the US. But that's again strange and doesn't stand to reason as she has pressed grave charges against him and his family in the Indian courts.
2. Correct again. There is always that someone, or else you find that someone if the situation was that desperate. The US is not a land of the heartless, but rather, quite humane folk. If you are really in a bad state of health, desperately needing help, even strangers would rush to help. Unless you live in a jungle, miles away from habitation, you can certainly find help (eventually she "CALLED" the Women's shelter - means she had access to a phone). This is again difficult to believe as her husband was an IT guy, who would live in a city for sure, and a moderate to big size in all probability. In any case, the probability that she had no means to communicate using Internet or a phone in the US is very low. Yes, she looks a pretty well educated Delhi girl to me. The reasons for the lapses would be appalling, especially as she was in the US for a considerable time (being married for over 3 years).
3. Correct, even someone who has never been to the US but is educated would probably know about 911. We don't know the details as to how she was helped. You are right about doubting if no neighbor or friend was around.
On the issue of showing the face of the "culprits", we don't really know which party has the real culprits. There are 498a cases with dowry allegations (in lakhs) and quite a few of those are false and fake. This I can say as I have known at least 6 such false cases, one in my own family where even I faced a clear cut threat of being accused in a fake dowry and 498a case from a party in married alliance with a family member of mine. We have to be cautious while prejudging stuff on the face values of cases presented, even if it is Aamir or the mainstream media presenting such cases. Do remember that famous NOIDA's Nisha Sharma dowry case. There is more than the media made reach our eyes to that case. [http://chatpatechatkhare.blogspot.com/2012/06/2.html]
This is an old post that I wrote immediately after the telecast of episode. There are several others around who share the same opinion. By now, I am quite convinced that the makers of that show do support some agenda (blatantly one-sided), which is pretty different from supporting a cause in all sincerity. They are very evidently taking sides, providing (or helping provide some people) partial (dubious, and in some cases even false) bits of information which is more of a propaganda. Some small fact-finding done by me is posted in the latest post on this blog, and there are questions raised about the misuse and misappropriation of donation and SMS money. [http://chatpatechatkhare.blogspot.com/2012/06/blog-post.html]
If nothing else, all this has actually reduced the image and brand of Aamir and his so-called-team in front of my eyes, irreparably. I am convinced because of multiple pointers that he is indeed a big charlatan.
That said, don't ever feel you are a commodity in the marriage market. I pray for your eternal happiness and well being.