कहा जाता है कि दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँक कर
पीता है. इस लिए मेरे वे भाई बहन जो ऐसी एन.जी.ओ. संस्थाएं चला रहे हैं जो
निस्वार्थ भाव से जन-सेवा कर रही हैं, मुझे कृपया क्षमा करेंगे. विभिन्न गैर-सरकारी
संगठन (एन.जी.ओ.) चलानेवालों द्वारा ऐसे ऐसे जघन्य राष्ट्रद्रोही, एजेंडे के
अनुरूप और घोर जन-विरोधी कार्य देख चुका हूँ कि अब किसी एन.जी.ओ. संस्था पर देर से
और कठिनाई से ही विश्वास कर पाता हूँ. और जब किसी एन.जी.ओ. संस्था के साथ कोई बड़ा या
विख्यात नाम जुड़ा देख लेता हूँ, तब तो संदेह दुगुना हो जाता है, क्योंकि बड़े घपले ऐसी
ही संस्थाओं से जुड़े देखे हैं. क्या करूँ, बार बार विश्वास किया है और बार बार
धोखा खाया है.
रोहतक, हरियाणा में ‘भारत विकास संगठन’ नामक एन.जी.ओ.
संस्था द्वारा संचालित ‘अपना घर’ नामक संरक्षण गृह में चल रहे व्यापक शोषण की कहानी [यहाँ भी] ने तो दिल दहला कर रख
दिया है. और विडम्बना तो देखिये, इस एन.जी.ओ. संस्था की संचालिका जसवंती ये सारे
आपराधिक कर्म भी करती रही और सरकार और अन्य संगठनों से धन के साथ पुरस्कार भी
बटोरती रही.
पिछले अठारह वर्षों में भारत में चल रही एन.जी.ओ.
संस्थाओं को विभिन्न स्रोतों से दस हज़ार करोड रुपयों से भी अधिक की राशि मिली है.
मुझे आश्चर्य यही रहा है कि यदि इतना पैसा भारत आया, तो दिखाई क्यों नहीं देता है?
कई जानी-मानी एन.जी.ओ. संस्थाओं के खर्चों पर नज़र डालें तो पता चलता है कि विगत कई
वर्षों के आय-व्यय का लेखा-जोखा उन्होंने या तो कहीं दिखाया ही नहीं है, और यदि
दिखाया है, तो उसमें ढेरों विसंगतियाँ हैं. खर्च के मदों को देखिये तो पता चलता है
कि मिले हुए धन के मात्र २५% को ही “समाज-सेवा” (या समाज-सेवा के
नाम पर जो किया जा रहा है) पर खर्च किया गया है. यदि ७५% धन संचालनकर्ता रख-रखाव
पर हुआ भी दिखा रहे हैं, तब भी दस हज़ार करोड रुपयों का २५% भी बहुत सारा धन है,
यदि ईमानदारी से समाज-सेवा पर खर्च हुआ हो. मुझे तो नहीं लगता है कि इतना पैसा भी
इन संस्थाओं द्वारा खर्च किया गया है. ‘सूचना के अधिकार’ में एन.जी.ओ. संस्थाएं
आती नहीं हैं इसलिए उनसे उनके विषय में किसी भी पूछ-ताछ कोई नहीं कर सकता है, खर्च
का हिसाब देखने की बात तो भूल ही जाइए. भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के स्वयम्भू नेता
केजरीवाल, सिसोदिया, किरण बेदी, भूषण द्वय आदि जो खुद कई एन.जी.ओ. चलाते हैं, वे प्रधान-मंत्री
तक को लोकपाल के अंदर लाने के लिए जोर लगा रहे हैं, पर कहते हैं कि एन.जी.ओ.
संस्थाओं को लोकपाल के अंदर नहीं लाना है. क्यों भई? माजरा क्या है? क्यों नहीं?
ताजा मुहिम में आमिर खान जी अपने कार्यक्रम में
कुछ एन.जी.ओ. संस्थाओं को पैसे दिलवा रहे हैं. यदि ये संस्थाएं ईमानदारी से अच्छा
कार्य कर रही हैं, तब तो ठीक है, पर क्या जनता द्वारा दिया गया पैसा वहीं जा रहा
है, जहाँ बताया गया है, और जहाँ जनता भेजना चाह रही है? मेरे कुछ मित्रों को लगता
है कि मैं बेवजह आमिर और उन के द्वारा किये गए “अच्छे” और “महान” कार्यों का विरोध कर रहा हूँ. ऐसे
मित्रों को मैंने हमेशा यही बताया है कि मैं केवल सवाल उठाता हूँ, और वह भी तभी जब
मुझे कोई बात तर्क-संगत नहीं लगती है. यहाँ, इस पोस्ट में भी कुछ सवाल ही उठा रहा
हूँ.
सत्यमेव जयते का मुख्य वेब पेज: इसी पन्ने में आगे ह्यूमैनिटी हॉस्पिटल ट्रस्ट का
उल्लेख है.
सत्यमेव जयते का वेब पेज: इस के हिसाब से २४
परगना, पश्चिम बंग का ह्यूमैनिटी हॉस्पिटल ट्रस्ट इन के चौथे एपिसोड का एन.जी.ओ.
पार्टनर है जिसे एस.एम्.एस. और रिलायंस फाउन्डेशन द्वारा दी हुई दान राशि प्रदान
की जानी थी.
सत्यमेव जयते का दूसरा वेब पेज: यह भी इसी बात की
पुष्टि करता है कि जिसे चौथे एपिसोड से आये धन की सहायता दी जानी थी, वह ह्यूमैनिटी
हॉस्पिटल ट्रस्ट २४ परगना, पश्चिम बंग वाला ट्रस्ट ही था.
ह्यूमैनिटी हॉस्पिटल ट्रस्ट का वेब पेज: इस के
हिसाब से यह ट्रस्ट “ह्यूमैनिटी
ट्रस्ट” के छत्र तले
आता है.
ह्यूमैनिटी ट्रस्ट का वेब पेज: यह ह्यूमैनिटी
हॉस्पिटल ट्रस्ट की मातृ-संस्था है.
इस संस्था की गतिविधियों की रिपोर्ट के पन्ने पर कुछ
भी नहीं मिला, हालांकि प्रथम पृष्ठ पर कुछ गतिविधियां अंकित हैं.
ह्यूमैनिटी हॉस्पिटल ट्रस्ट और ह्यूमैनिटी ट्रस्ट
के वेब पेजों को देखा जाए तो दोनों के पते भी एक ही हैं और फोन नंबर भी.
ह्यूमैनिटी ट्रस्ट का दूसरा वेब पेज: यह पन्ना
ऐसा दावा करता है कि वे सत्यमेव-जयते या आमिर खान द्वारा बताई गयी वह संस्था नहीं
हैं जिसे चौथे एपिसोड के हिसाब से एक्सिस बैंक द्वारा पैसा दिया जाना था.
एक्सिस बैंक का वेब पेज: इस के हिसाब से पैसा २४
परगना के उसी ह्यूमैनिटी हॉस्पिटल ट्रस्ट को जाना था जिनके वेब-पेज उपरोक्त हैं.
[चित्र स्पष्ट न हो तो यहाँ क्लिक करें, और एपिसोड संख्या ४ के साथ बताई गयी संस्था की जानकारी को बड़ा कर के देखें]
एक्सिस बैंक का दूसरा वेब पेज: इस के हिसाब से
पैसा ह्यूमैनिटी हॉस्पिटल ट्रस्ट को दिया तो गया पर पता २४ परगना, पश्चिम बंग का न
हो कर मुंबई में अंधेरी (पश्चिम) का एक पता है.
गूगल मैप से देखा हुआ वह पता जिसे एक्सिस बैंक ने
पैसे दिए हैं: यहाँ मुझे कोई हस्पताल तो नहीं नज़र आ रहा है. [कोई मित्र आस-पास रहता हो तो कृपया बताए.] गूगल से ढूँढने पर इस पते के
हिसाब से ह्यूमैनिटी हॉस्पिटल ट्रस्ट नाम की किसी संस्था के बारे में कोई पता नहीं
चलता है.
सवाल एक: आमिर जी की तथाकथित रिसर्च टीम ने ऐसे
किसी ट्रस्ट को आखिर ढूँढा कैसे, जिसे गूगल भी नहीं ढूंढ पा रहा?
पश्चिम बंग के ह्यूमैनिटी हॉस्पिटल ट्रस्ट के वेब
पेज के हिसाब से जो पैसा दिया जा रहा है वह इसी नाम का कोई दूसरा ट्रस्ट है.
यहाँ यह मान कर चलना होगा कि इस कथन का मतलब यही
है कि उस दूसरे ट्रस्ट का पश्चिम बंग के ह्यूमैनिटी ट्रस्ट से किसी प्रकार का
लेना-देना नहीं है, अन्यथा पश्चिम बंग के ह्यूमैनिटी ट्रस्ट के वेब पेज पर यह लिखा
होता कि पैसा एक अन्य सहयोगी संस्था को गया है, सीधे उन्हें नहीं.
सवाल दो: यदि अंधेरी पश्चिम के इस पते पर किसी
ट्रस्ट का ऑफिस है, तो भुगतान में “Payment to Shopping Mall” क्यों
है? [चलिए, हो सकता है कि बैंक किसी को भी पैसों का भुगतान करते समय जो चालान
छापता है, सभी में यही लिखा होता है, फिर भी शॉपिंग मॉल के नाम से संदेह तो हो ही
सकता है.]
सवाल तीन: और जैसा कि पश्चिम बंग के ह्यूमैनिटी
हॉस्पिटल ट्रस्ट के वेब पेज पर लिखा है कि उनके ट्रस्ट को कोई पैसा आमिर या उनकी
टीम या सत्यमेव-जयते द्वारा नहीं मिला, तो आमिर, उनकी टीम और एक्सिस बैंक अपनी वेब
साईट पर पश्चिम बंग के ह्यूमैनिटी हॉस्पिटल ट्रस्ट को पैसे देने की बात क्यों कर
रहे हैं?
सवाल चार: आप के और आप जैसी बहुत सारी भोली भाली
भावुक जनता की गाढ़ी कमाई लगा कर किये हुए लाखों एस.एम्.एस. का पैसा दरअसल गया
कहाँ?
सबसे बड़ा सवाल: क्या पैसा असल में वहीं गया जहां
आप भेजना चाह रहे थे?
किसी को ठीक जानकारी हो तो कृपया यह गुत्थी
सुलझाने में सहायता करें.
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