Wednesday, September 15, 2010

बिदाई बुखार उर्फ़ फ़ेयरवैल फ़ीवर

एक दिन की है बात,
कुछ शिक्षक साथियों के साथ
हम लैब में थे मशगूल,
सारी दुनिया और कॉलेज को भूल
ध्यान केन्द्रित कर रखा था अचल
सैट कर रहे थे नये प्रैक्टिकल
कि अचानक भवन में हुआ
बड़े ज़ोर का शोर
हम निकले लैब से
और दौड़ पड़े शोर की ओर
लगा, फिर फट गया है
टायलेट में अगरबत्ती बम
फिर साबित करनी चाही है
किसी ने अपनी डेयरिंग और दम

एक छात्र हमें देखते ही
बस अबाऊट-टर्न हो गया
हमने सोचा
हम या तो हैं ही इतने डरावने
या जरूर इससे कोई जुर्म हो गया
जोर से बोले - रुक !!
--- वो रुक गया
पलटा, और, कोई चारा नहीं था,
इसलिये ज़रा झुक गया

हमने पूछा - "ये बम फटा है,
या किसी ने आग लगायी है ?
अभी-अभी कुछ छात्राएँ
बड़ी ज़ोर से चिल्लाई हैं
अब किसने फिर ये
नया पंगा लिया है ?
कहीं किसी ने मधुमक्खियों का
छत्ता तो नहीं छेड़ दिया है ?"
वह बोला - "सर, ऐसी कोई बात नहीं है
कोई आतंक नहीं है व्याप्त
बस इतनी सी बात है कि
फ़ाइनल इयर का सेशन हो गया है समाप्त
वैसे तो क्लास से भागने की
इनकी सदा की आदत रही है
पर अब और क्लास अटैण्ड करने की
ज़रूरत ही नहीं है
बस, उसी की खुशियाँ
मनाई जा रही हैं
और बिना कन्ट्रोल के
फोटुएँ खिंचाई जा रही हैं ।"
हमने पूछा - "अपनी कहो,
क्या क्लास से भाग रहे थे ?
नींद आ रही है ना ?
कल कितने बजे तक जाग रहे थे" ?

उसने ज्ञान दिया - "सर,
क्लास से भागने से
कहाँ मेरा कोई नाता है ?
क्लास से भागता तो वो है
जो क्लास के लिये जाता है"।

हमने पूछा - "हमें देख भागे क्यों ?
और ऐसा क्या है छुपाने को ?"

उसने कहा - "सर, कुछ खास नहीं,
नया एन-95 लाया था
जनता को दिखाने को ।"

हमने पूछा - "सिर्फ़ दिखाना है,
या रोल में आना है ?
फिर कुछ पर रौब जमाना है
और कुछ को रिझाना है ?"

उसने कहा - "सर,
आपसे क्या छुपाना है ?
आप उम्र में बड़े हैं
और यहीं से तो पढ़े हैं
आपने अपनी ज़िन्दगी में
ये सब नहीं किया
तो क्या हम भी न करें ?
डरते होंगे हमारे दुश्मन
हम भला आपसे क्यों डरें ?
बस, ज़रा कॉरिडोर से
यूँ ही गुज़र रहे थे
आपकी कसम, पप्पा से एक
जरूरी बात कर रहे थे ।"

हम कर गये ऐसे ही हजम
उसकी वो झूठी कसम
कुछ नहीं कहा,
बस रह गये मौन
समझ गये थे कि
असल में पप्पा हैं कौन ?

कि फिर से चिंघाड़ सुनाई दी
और कुछ लोगों ने लगाया एक नारा
पहली मंज़िल से नीचे झाँका हमने
तो पाया एक अजब सा नज़ारा
दर्जनों फ़ोटोग्राफ़र
नीचे अपने कैमरे आजमा रहे थे
कितने ही तरीकों से
अपनी प्रतिभा दिखा रहे थे
मानो कैमरे नहीं,
मशीनगन चला रहे थे
और फ़ोटो खिंचवाने वाले
कैसी-कैसी
भाव-भंगिमाएँ दिखा रहे थे
हमने सोचा - ऐसी अदाकारी
हमने पहले कहाँ देखी होगी ?
ऐसे चेहरे तो बनाते हैं -
विदूषक, जोकर या मानसिक रोगी ।

तभी एक हरी-वर्दी वाला गार्ड
बड़े वेग से भागता हुआ आया
हाँफ़ते हुए उसने हमें
शोले की बसन्ती वाले अंदाज़ में बताया -
"वो छत पर देखिये सर
लड़कियाँ कहाँ बढ़ गयी हैं
पानी की टंकी और ऐन्टीने
तक पर चढ़ गयी हैं
लगता है
आज कोई आफ़त जरूर आयेगी
जरूर कहीं
कोई गिर-गिरा जायेगी
और
हमारी नौकरी पर बन आयेगी
फिर सिर पर
तलवार तन जायेगी
सब नीचे उतर आयेंगी माई-बाप
अगर ज़ोर से चिल्ला देंगे आप" ।

हमने सोचा - नीचे आयेंगी या न आयेंगी
अगर हम चिल्लाये या छत पर पहुंचे
तो मारे डर के
दो-चार नीचे ज़रूर टपक जायेंगी

हमने शोले के जय के अंदाज़ में
गार्ड से कहा -
"हाँ, देखा - कुछ नहीं होगा
जब जोश उतरेगा,
तो वीरू की तरह ये भी उतर आयेंगी"।
मन में कहा - "गार्ड, मेरे भाई,
तुम्हें बड़ा मुगालता है
मेरे पास इन्हें उतारने के लिये
कोई जादू-मन्तर नहीं है
तुम बावर्दी हो, मैं बे-वर्दी
बाकी इनके लिये
मुझमें-तुममें कोई अन्तर नहीं है"।

ब्लॉक में रहना तो मुश्किल था
इसलिये हमने ब्लॉक छोड़ दिया
और कॉफ़ी-कॉर्नर उर्फ़ सी.सी.
की ओर मुख मोड़ लिया
पर इस ओर भी
कहाँ कोई शान्त ठिकाना था
मानो, सब को आज ही
फ़ोटो खिंचवाना था
ढेरों स्टूडियो से
बन गये थे चहुँ ओर
सुनामी की तरह का
उठ रहा था शोर
सारा कैम्पस हल्ले से
हो चुका था आक्रान्त
डर के मारे सहम
मधुमक्खियाँ तक हो गयीं थीं शान्त
हम ने सोचा -
ये वीर-वीराँगनाएँ अगर
अठारहवीं शताब्दी में पैदा होते
तो अंग्रेज़ इनका शोर सुनकर
वैसे ही भारत से भाग खड़े होते

अचानक नज़र आये, पेड़ों और
हॉस्टल की छत पर अनेक साये
हमने आस-पास वालों से कहा -
"अरे ! भगाओ !!
कैम्पस में फिर आज बन्दर घुस आये" !
कोई बोला - "नहीं सर,
वहाँ नहीं है कोई बन्दर
ये तो हैं हमारे प्यारे सीनियर
आज से फ़ेयरवैल तक के सिकन्दर" !

सी.सी. में राजू बोला -
"सर, इस महीने तो हमारी बन आई है
पार्टियों से हुई इस बार अच्छी कमाई है
कितना अच्छा होता
कि हमेशा ऐसे ही कमाते
क्यों नहीं आप लोग
हर महीने फ़ेयरवैल मनाते ?
'वृन्दावन' से 'हरि-राज' तक,
'मधुरम' से 'शिवनाथ' तक, सभी कमा रहे हैं
अपने स्टूडेण्ट हर जगह,
डेली पार्टियाँ जमा रहे हैं
गिने चुने दिन रह गये
पैसों का अब क्या मोल
फ़ुल चल रहे हैं सब -
क्या 'ऑर्किड', क्या 'रश-एण्ड-रोल'
कहीं बिलासपुर बैच,
तो कहीं बिहार बैच की महफ़िल जमेगी
सन्डे शाम का होटल डिनर भूल जाइये
कहीं जगह नहीं मिलेगी" ।

ओवरब्रिज के नीचे से गुजरे
तो रुक गये कुछ ठिठक के
ऊपर हमारे कुछ छात्र-छात्राएँ दिखे
जो वहाँ थे मुण्डेर से लटक के
हमने चिल्ला कर पूछा -
"अपने बनानेवाले से मिलने की
जल्दी क्यों मच रही है" ?
ऊपर से कोई चिल्लाया - "सर !
बीच से हट जाइये…
हमारी फ़ोटो खिंच रही है
आज तो लड़कियों ने भी
रख दिया है सब को हिला कर
बराबरी साबित कर दी है
कंधे से कंधा मिला कर
इन सब ने भी आज टपरे पर
फ़ोटो खिंचवाई है
और ओवरब्रिज क्या,
आमिर खान की तरह
रेल्वे ट्रैक पर दौड़ लगाई है
फिर न कहियेगा
इन में से कोई भी बेचारी है
ओवरब्रिज के बाद
माइक्रोवेव टावर की बारी है
आज तो हम
किसी जगह को नहीं छोड़ेंगे
जिसने रोका उसके सर पर
बम फोड़ेंगे" ।
हमने सोचा - आज तो
भिलाई-दुर्ग वालों की नहीं है खैर
जिसने इन्हें टोका
उसी से हो जायेगा इनका बैर ।

चौक पर पहुँचे,
तो पाया, बदला हुआ है नक्शा
रिक्शेवाले तो सारे खड़े थे
पर नहीं था एक भी रिक्शा
हमने एक से पूछा -
"क्या भाई देवदास ?
क्या आज बात है कोई खास ?
हड़ताल है, या
और ही कोई माजरा है ?
आज तुममें से कोई भी
रिक्शा नहीं चला रहा है "!!
वो खुशी से बोला - "हम सभी
आज बड़े प्रसन्न भये हैं
आपके छात्र सारे रिक्शे
फ़ोटोग्राफ़ी हेतु किराये पर ले गये हैं"।

आगे पहुँचे, तो कुछ
नया देखा बाजार में
बहुत सारे लोग खड़े थे
एक लम्बी कतार में
हमने पूछा - "क्या राशन, गैस,
या पैट्रोल के लिये लाइन लगा रहे हैं ?
या बारी-बारी से हनुमानजी को
दूध पिला रहे हैं ?
ऐसा कुछ हो तो हम भी
लाइन में लग जायें
कृपा कर के हमें
इसका कारण तो बताएँ
आखिर किस बात की है ये लाइन"?
उत्तर मिला - "सर !
आज का दिन है बड़ा फ़ाइन !!
आज कुछ कर दिखाना है
शाम को
फ़ेयरवैल पार्टी में जाना है
बड़ा कीमती आज का टाइम है
राशन, गैस, पैट्रोल नहीं
सामने बोर्ड देखिये
ये ब्यूटी-पार्लर की लाइन है "।
हमने जो ऊपर उठाई नज़र
तो पढ़ा
"वीनस कम्प्यूटराइज़्ड ब्यूटी-पार्लर"
सोचा, विज्ञान से दुनिया भी है
कमाल की बन आई
शायद रोबोट करते होंगे
यहाँ रँगाई और पुताई।

दर्जी से पूछा -
"सूट सिल गया हो तो ले जायें" ?
उसने कहा - "सॉरी सर !
आप अगले हफ़्ते आयें
समझ नहीं आ रहा कि जियें या मरें
फ़ैयरवैल के इतने ऑर्डर हैं
कैसे पूरे करें ?
माफ़ कीजियेगा,
सूट तो तैयार था, पर
एक प्रॉब्लम मोल ले लिया है
आपका तैयार सूट,
आपके स्टूडेण्ट को
किराये पर दे दिया है" ।
हमने कहा - "नालायक !!!
अब हम क्या करेंगे ?
पार्टी में अब
हम अपने ऊपर क्या धरेंगे" ?
उसने कहा - "अपना कान
ज़रा इधर लाइये
और बिलकुल मुफ़्त
एक बढ़िया सलाह पाइये
वहाँ कोने में धोबी की दुकान है
बस वहाँ पहुँच जाइये फ़टाफ़ट
और किराये पर कोई कुर्ता-पायजामा
ले कर निकल जाइये सरपट
सोच क्या रहे हैं,
कुर्ता भी खूब फ़बेगा
देर करेंगे, तो धोबी के पास
कुर्ता भी न बचेगा" ।

अपना रोल हमें आखिर
निभाना ही था
शाम को फ़ैयरवैल पार्टी में
जाना ही था
सोच रहे थे,
आज हो जायेगी देर रात
तभी हुई अचानक
सवालों की बरसात
"कहाँ जा रहे हो ?
कितने बजे आओगे ?
क्या आज भी घर पर
खाना नहीं खाओगे ?
ये सारे फ़ंक्शन
क्या तुम ही कराते हो ?
लगातार कितनी रातों को
बड़ी देर से आते हो !!
कहे देती हूँ,
आज लेट मत होना
वरना दरवाजा नहीं खुलेगा
बाहर ही सोना" ।

हमने कैम्पस के अंदर
जैसे ही मोड़ी कार
लगा जैसे हो
कोई नया ही संसार
बड़ी भीड़ थी,
बहुत से लोग
सजे-धजे खड़े थे
बैण्ड की धुन पर लोग
सड़क पर नाचने को अड़े थे
हमें लगा, गलत जगह आ गये
यहाँ तो
हो रही है कोई शादी
पता नहीं
कहाँ है फ़ेयरवैल पार्टी
हम ने एक लिपी-पुती
साड़ीधारी कन्या से पूछा
"आप क्या ज़रा
सड़क छोड़ कर नाच लेंगी
और हमारी
एक दुविधा दूर कर सकेंगी
शायद कार्यक्रम कुछ बदल गया है
आपको पता है,
हमारे फ़ेयरवैल का वेन्यू क्या है" ?
एक नाचता सूटधारी बोला -
"सर, पहचाना नहीँ,
बस हमारा गेट-अप नया है
मैं आपका शिष्य हूँ,
और वो साड़ीधारी आपकी शिष्या है" ।

हम आगे बढ़े, और पूछा -
"बाकी के टीचर्स कहाँ हैं" ?
उत्तर मिला - " बस वहीं हैं
अपने स्टूडेण्ट जहाँ हैं
गये हैं उनको मनाने
और ज़रा जल्दी बुलाने
टीचर्स अगर धकेलने और
हाँकने को न जाते
तो छात्र सी.सी. से ओ.ए.टी. तक
आने में पूरे तीन घण्टे लगाते "।

अंततः बारात लगी
शुरू हुआ कार्यक्रम
होने लगे डाँस पर डाँस
धम धमा धम
फिर टाइटल दिये जाने लगे
बहुत से लोग मिल कर
एक को स्टेज तक पहुँचाने लगे
स्टेज पर ये सब,
उस एक को
कई बार उछाल देते
बेचारे के शरीर के
सारे कस-बल निकाल देते
जनता ये सारे
करतब देख घबराई
और हमें
बनती हुई रूमाली रोटी याद आई

कार्यक्रम चलता ही गया,
चलता ही गया
कभी न खतम होने वाले
टी.वी. सीरियलों की तरह
बढ़ता ही गया
मच्छरों ने हम पर,
हजारों हमले किये मनमाने
पर हम भी क्या चीज़ हैं
बस, डटे रहे सीना ताने

सुबह होने को आई
तो नाचते हुए लोगों से की दुआ
"अब बस करो भाई लोगो
सचमुच में बहुत हुआ" ।
पर वाह रे
अनूठे बिदाई बुखार
लोग सुनने को
थे ही नहीं तैयार
हम सोचने लगे -
क्या किया जाये
अचानक सूझा
एक सरल उपाय
छात्राओं को
बुला कर कहा - चलो, निकलो
हर एक छात्रा रजामन्द हो गयी
अगले दस मिनट में
लड़कों की डाँस पार्टी बन्द हो गयी

पड़ोस का रिक्शावाला
बैठा था हताश-उदास
हमने पूछा - "क्या
आज रात का कार्यक्रम
नहीं हुआ देवदास ?
बड़े दुखी दिख रहे हो
तुम आज रात
पैसे नहीं हैं,
या और कोई है बात" ?
उसने कहा - "पैसों की तो आज
हुई है बरसात
किल्लत वाली आज,
नहीं है कोई बात
हफ़्ते भर से बैठे
सूख रहे हैं इन्तज़ार में
फ़ेयरवैल वालों ने एक भी
बोतल नहीं छोड़ी है बाजार में "।

मुझे छोड़िये, वहाँ जाइये
देखिये,
आपके कुछ छात्र रो रहे हैं
बिछड़ने के गम में
सब को आँसुओं में डुबो रहे हैं
जाइये, समझाइये
दूर कीजिये उनकी उदासी
वरना आँसुओं की बाढ़ में
डूब न जायें भिलाईवासी" ।

हमने कहा -
"ये बी.आई.टी. वाले हैं
इनके आँसुओं में भी दम है
बी.आई.टी. का कौन
दुनिया में किसी से कुछ कम है" ?

****************************
-------------------- अमिताभ मिश्र

2 comments:

  1. wow Sir aapne kitni khubsurti se saari yadon ko taja kar diya...this is just amazing...

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  2. Sir i dont have anyh words to say about this kavita...aapne har pal isme add kar diya hai..Thanks a lot for reminding all those days.

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